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🌼 होलाष्टक प्रारंभ 🌼

॥ ॐ श्री परमात्मने नमः ॥

🚩होलाष्टक प्रारंभ 2025 🚩

होलाष्टक के बारे में(About Holashtak):

           होलाष्टक का पालन होली के रंग-बिरंगे त्यौहार से जुड़ा हुआ है। यह होली के उत्सव से ठीक पहले के आठ दिनों की अवधि को संदर्भित करता है। 


           उत्तरी भारत के अधिकांश हिंदू समुदाय होलाष्टक की अवधि को अशुभ मानते हैं। उत्तर भारत में प्रचलित पूर्णिमांत कैलेंडर के अनुसार, होलाष्टक शुक्ल पक्ष की अष्टमी (8वें दिन) से शुरू होता है और फाल्गुन महीने की पूर्णिमा तक चलता है। 


            होलाष्टक का अंतिम दिन यानी फाल्गुन पूर्णिमा अधिकांश क्षेत्रों में होलिका दहन का दिन होता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार होलाष्टक फरवरी के मध्य से मार्च के मध्य तक होता है। होलाष्टक हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। 

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🕰️Holashtak 2025 Date & Time:📅


     सूर्योदय 07 मार्च, प्रातः 6:46 

सूर्यास्त 07 मार्च, सायं 6:28 बजे 

अष्टमी तिथि का समय 06 मार्च, 10:51 पूर्वाह्न – 07 मार्च, 09:19 पूर्वाह्न 

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💐होलाष्टक का पौराणिक महत्व(Holashtak Mythological Significance):💐

 

              फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से होलिका दहन यानी पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। इस दिन से मौसम में बदलाव आना शुरू हो जाता है। सर्दी विदा होकर गर्मी का आगमन होता है। वातावरण में बसंत ऋतु के आगमन की खुशबू महसूस होने लगती है। हवा फूलों की खुशबू से महक उठती है। होलाष्टक के संबंध में मान्यता है कि होलाष्टक की शुरुआत उस दिन से हुई थी जिस दिन भगवान श्री भोले नाथ ने क्रोध में आकर कामदेव का नाश किया था। 

     
              इस दिन भगवान श्री विष्णु की पूजा की जाती है। होलाष्टक की कथा हरिण्यकश्यप और प्रह्लाद से संबंधित है। होलाष्टक इन आठ दिनों की एक लंबी आध्यात्मिक प्रक्रिया का केंद्र बन जाता है, जो भक्त को परम ज्ञान की ओर ले जाता है। 

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🍀 होलाष्टक नौ दिनों तक मनाया जाता है(Holashtak Observed for Nine Days):🍀

 

           हिंदू माह फाल्गुन की शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि से आठ दिनों की अवधि होलाष्टक को अशुभ माना जाता है। इस अवधि को किसी भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश या किसी नए व्यावसायिक उद्यम की शुरुआत के लिए वर्जित माना जाता है। आठवें दिन, होलाष्टक फाल्गुन पूर्णिमा के प्रदोष काल में होलिका दहन के साथ समाप्त होता है। 


             
कभी-कभी, फाल्गुन पूर्णिमा प्रदोष काल के दौरान भद्रा (विष्टि) करण से पीड़ित होगी। भद्रा करण में शुभ कार्य करना वर्जित है। इस कारण, ऐसे वर्षों में, होलिका दहन अगले दिन प्रदोष काल में किया जाएगा, जिससे होलाष्टक की सामान्य अवधि आठ दिनों से बढ़कर नौ दिन हो जाएगी। 

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🍀होलाष्टक पर नहीं किए जाते ये काम(These works are not done on Holashtak):🍀

                
             होलाष्टक मुख्य रूप से पंजाब और उत्तरी भारत के क्षेत्रों में मनाया जाता है। होलाष्टक के दिन से जहां कुछ महत्वपूर्ण कार्य शुरू हो जाते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी कार्य हैं जो इन आठ दिनों में बिल्कुल नहीं किए जाते। यह निषेध काल होलाष्टक के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहता है। 


               
होलाष्टक के समय हिंदुओं में बताए गए शुभ कार्यों और सोलह संस्कारों में से किसी को भी न करने का विधान बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन अगर अंतिम संस्कार करना हो तो उसके लिए पहले शांति कर्म किया जाता है। उसके बाद ही बाकी काम किए जाते हैं। संस्कारों पर रोक होने के कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है। 

       
            इस अवधि में विवाह, सगाई, गर्भाधान संस्कार, शिक्षा आरंभ, कर्ण छेदन, नामकरण, नए घर का निर्माण या गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन आठ दिनों में शुभ मुहूर्तों का अभाव रहता है। 


               
होलाष्टक का समय ध्यान और भक्ति के लिए उपयुक्त माना जाता है। यह अवधि तपस्या के लिए आदर्श मानी जाती है। इस अवधि में ब्रह्मचर्य का पालन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस अवधि में स्नान और दान की भी परंपरा है। 

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💐होलाष्टक पर क्यों नहीं किए जाते शुभ कार्य(Why are auspicious works not done on Holashtak): 💐

            होलाष्टक पर शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। इस अवधि में शुभ मुहूर्त नहीं मिलते। इन आठ दिनों को शुभ नहीं माना जाता। इस समय शुभता न होने के कारण मांगलिक कार्यक्रम रोक दिए जाते हैं। 


             
पौराणिक कथाओं के अनुसार, दैत्यों के राजा हिरेकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को भगवान श्री विष्णु की पूजा न करने को कहा। प्रहलाद अपने पिता की बात नहीं मानता और पूरी श्रद्धा से भगवान विष्णु की पूजा करता रहता है। इससे हिरेकश्यप नाराज हो जाता है। वह फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिनों तक प्रहलाद को तरह-तरह से प्रताड़ित करता है। यहां तक कि वह अपने ही पुत्र को मारने की कोशिश भी करता है। हालांकि, भगवान विष्णु के प्रति प्रहलाद की अखंड भक्ति के कारण हर बार भगवान विष्णु उसकी रक्षा करते हैं। 


           
आठवें दिन यानी फाल्गुन पूर्णिमा को हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रहलाद को मारने की जिम्मेदारी सौंपी। होलिका को वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे नुकसान नहीं पहुंचाएगी। होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाती है। लेकिन भगवान श्री विष्णु एक बार फिर अपने भक्त को बचा लेते हैं। होलिका उस अग्नि में जलकर मर जाती है, लेकिन प्रह्लाद पूरी तरह सुरक्षित निकल आता है। इसी वजह से होलिका दहन से पहले के आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता है और इन्हें शुभ नहीं माना जाता है। 

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