मां सिद्धिदात्री को अलौकिक शक्तियों की देवी के रूप में पूजा जाता है। उन्हें कमल पर बैठे या शेर की सवारी करते हुए देखा जाता है। माना जाता है कि वह अपने भक्तों को आशीर्वाद, इच्छाओं की पूर्ति और आध्यात्मिक उत्थान प्रदान करती हैं। “सिद्धि” शब्द अलौकिक शक्तियों को संदर्भित करता है, और “दात्री” का अर्थ है प्रदाता। मां सिद्धिदात्री की पूजा विशेष रूप से आध्यात्मिकता और ज्ञान की तलाश करने वाले लोग करते हैं।
***
महागौरी का अर्थ है वह रूप जो सुंदर और तेजस्वी हो। अगर आप देखें तो प्रकृति के दो रूप हैं। एक रूप है कालरात्रि जो सबसे भयानक और विनाशकारी है। दूसरी ओर, आप महागौरी को देखते हैं, जो देवी माँ का सबसे सुंदर और शांत रूप है। महागौरी सुंदरता की प्रतिमूर्ति हैं। महागौरी आपकी सभी इच्छाओं और कामनाओं को पूरा करती हैं। देवी महागौरी आपको वह सभी आशीर्वाद और वरदान देती हैं जो आप भौतिक लाभ के लिए चाहते हैं, ताकि आप भीतर से संतुष्ट हों और जीवन में आगे बढ़ें।
गौरी का अर्थ यह भी है कि जो आपको ज्ञान देती है, आपको जीवन में आगे बढ़ाती है और आपको मुक्त करती है। महागौरी जीवन में गति और परम स्वतंत्रता देती हैं, वे मुक्ति लाती हैं।
***
माँ सिद्धिदात्री के आठ सिद्धियाँ हैं – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व।
ऐसा माना जाता है कि देवी ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव को अपने कर्तव्यों को पूरा करने में मदद करने के लिए ये सिद्धियाँ प्रदान की थीं। इसके अतिरिक्त उन्होंने उन्हें नौ निधियाँ और दस प्रकार की अलौकिक शक्तियाँ भी प्रदान कीं।
***
नौवें दिन माता सिद्धिदात्री को हलवा, पूड़ी, काले चने, मौसमी फल, खीर और नारियल का भोग लगाया जाता है। माता की पूजा करते समय बैंगनी या जामुनी रंग पहनना शुभ रहता है। यह रंग अध्यात्म का प्रतीक होता है।
माँ सिद्धिदात्री को समर्पित नवरात्रि का नौवाँ दिन भक्तों के लिए बहुत महत्व रखता है। पूजा के लिए शुभ समय क्षेत्र और ग्रहों की स्थिति के आधार पर बदलते रहते हैं। बुधवार, 17 अप्रैल, 2024 को मध्याह्न मुहूर्त सुबह 11:03 बजे से दोपहर 1:38 बजे तक है, जो 2 घंटे 35 मिनट तक रहेगा।
***
सिद्धिदात्री मां कमल के फूल पर विराजमान हैं, जबकि उनका रथ सिंह है। वह लाल वस्त्र पहनती हैं और उनके चार हाथ हैं। उनके निचले बाएं हाथ में कमल का फूल है, जबकि ऊपरी बाएं हाथ में शंख है। उनके ऊपरी दाहिने हाथ में चक्र है, जबकि निचले दाहिने हाथ में गदा है।
सिद्धिदात्री का अर्थ है – “सिद्धि” का अर्थ है पूर्णता जबकि “दात्री” का अर्थ है “देने वाली” इसलिए उन्हें माता सिद्धिदात्री के रूप में पहचाना जाता है।
वह अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियाँ (पूर्णता) प्रदान करती हैं, इसलिए उन्हें सिद्धिदात्री माँ के नाम से जाना जाता है। माँ सिद्धिदात्री का दूसरा नाम देवी लक्ष्मी है, जो धन, सुख और सफलता का प्रतिनिधित्व करती हैं। आप हमारे विशेषज्ञ पंडितों द्वारा आपके लिए ऑनलाइन की जाने वाली लक्ष्मी पूजा के साथ देवी लक्ष्मी के सभी आठ रूपों को प्रसन्न कर सकते हैं और अपने जीवन में धन और समृद्धि ला सकते हैं।
***
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब ब्रह्मांड पूरी तरह से अंधेरे से भरा हुआ एक विशाल शून्य था। दुनिया मे कहीं भी किसी प्रकार का कोई संकेत नहीं था तब उस अंधकार से भरे हुए ब्रह्मांड मे ऊर्जा का एक छोटा सा पुंज प्रकट हुआ। देखते ही देखते उस पुंज का प्रकाश चारों ओर फैलने लगा, फिर उस प्रकाश के पुंज ने आकार लेना शुरू किया और अंत मे वह एक दिव्य नारी के आकार मे विस्तृत होकर रुक गया। वह प्रकाश पुंज देवी महाशक्ति के आलवा कोई और नहीं था।
सर्वोच्च शक्ति ने प्रकट होकर त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी) को अपने तेज़ से उत्तपन्न किया और तीनों देवों को इस सृष्टि को सुचारु रूप से चलाने के लिए अपने-अपने कर्तव्यों के निर्वाहन के लिए आत्मचिंतन करने को कहा।
देवी के कथनानुसार तीनों देव आत्मचिंतन करते हुए जगतजननी से मार्गदर्शन हेतु कई युगों तक तपस्या मे लीन रहें। अंतत: उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महाशक्ति ‘माँ सिद्धिदात्री’ (Siddhidatri) के रूप मे प्रकट हुईं। देवी ‘माँ सिद्धिदात्री’ ने ब्रह्माजी को सरस्वती जी, विष्णुजी को लक्ष्मी जी और शिवजी को आदिशक्ति प्रदान किया।
‘माँ सिद्धिदात्री’ ने ब्रह्माजी को सृष्टि की रचना का भर सौंपा, विष्णु जी को सृष्टि के पालन का कार्य दिया और महादेव को समय आने पर सृष्टि के संहार का भार सौंपा। ‘माँ सिद्धिदात्री’ ने तीनों देवों को बताया की उनकी शक्तियाँ उनकी पत्नियों मे हैं जो उनके कार्यनिर्वाहन मे उनकी सहायता करेंगी। उन्होने त्रिदेवों को दिव्य-चमत्कारी शक्तियाँ भी प्रदान की जिससे वो अपने कर्तव्यों को पूरा करने मे सक्षम हो सकें। देवी ने उन्हें आठ अलौकिक शक्तियाँ प्रदान की।
इस तरह दो भागों नर एवं नारी, देव-दानव, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे तथा दुनिया की कई और प्रजातियों का जन्म हुआ। आकाश असंख्य तारों, आकाशगंगाओं और नक्षत्रों से जगमगा उठा। पृथ्वी पर महासागरों, नदियों, पर्वतों, वनस्पतियों और जीवों की उत्पत्ति हुई। इस प्रकार ‘माँ सिद्धिदात्री’ की कृपा से सृष्टि की रचना, पालन और संहार का कार्य संचालित हुआ।
एक अन्य कथा के अनुसार जब पृथ्वी पर दानव महिषासुर का उत्पात बहुत बढ़ गया था तब सभी देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शरण मे जाते हैं, तत्पश्चात सभी देवों के तेज़ से माता सिद्धिदात्री प्रकट होती हैं और ‘दुर्गा’ रूप मे महिषासुर का वध करके समस्त सृष्टि की रक्षा करती हैं।
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥
Om Devi Siddhidatryai Namah॥
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
Siddha Gandharva Yakshadyairasurairamarairapi।
Sevyamana Sada Bhuyat Siddhida Siddhidayini॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
Ya Devi Sarvabhuteshu Maa Siddhidatri Rupena Samsthita।
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namah॥
जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता।तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥
तू सब काज उसके करती है पूरे।कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥
***