माँ कुष्मांडा(Maa Kushmanda), देवी दुर्गा का चौथा अवतार हैं। “कुष्मांडा” नाम संस्कृत से लिया गया है, जिसमें “कु” का अर्थ “थोड़ा“, “ऊष्मा” का अर्थ “गर्मी” और “अंडा” का अर्थ “ब्रह्मांडीय अंडा” होता है। उनके आठ से दस हाथ हैं, जिनमें त्रिशूल(trident), चक्र(discus), तलवार(sword), हुक(hook), गदा(mace), धनुष(bow), बाण(arrow) और अमृत (अमृत) और रक्त के दो घड़े हैं। उनका एक हाथ हमेशा अभयमुद्रा पर रहता है, जिससे वे अपने सभी भक्तों को आशीर्वाद देती हैं।
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देवी सिद्धिदात्री का रूप धारण करने के पश्चात्, ब्रह्माण्ड को ऊर्जा प्रदान करने हेतु देवी पार्वती सूर्य मण्डल के मध्य निवास करने लगीं। इसके पश्चात् से ही देवी को कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है। कूष्माण्डा वह देवी हैं, जिनमें सूर्य के अन्दर निवास करने की शक्ति एवं क्षमता है। देवी माता की देह की कान्ति एवं तेज सूर्य के समान दैदीप्यमान है।
नवरात्रि पूजा(Navaratri Puja): नवरात्रि के चतुर्थ दिवस(fourth day) पर देवी कूष्माण्डा(Goddess Kushmanda) की पूजा-अर्चना की जाती है।
शासनाधीन ग्रह(Ruled Planets): मान्यताओं के अनुसार, देवी कूष्माण्डा सूर्य ग्रह को दिशा एवं ऊर्जा प्रदान करती हैं। अतः भगवान सूर्य देवी कूष्माण्डा द्वारा शासित होते हैं।
स्वरूप वर्णन(Description of the form): देवी सिद्धिदात्री( Goddess Siddhidatri) सिंही पर सवार हैं। देवी को अष्टभुजाधारी रूप में दर्शाया गया है। उनके दाहिने हाथों में कमण्डलु(kamandalu), धनुष(bow), बाण(arrow) एवं कमल तथा बायें हाथों में क्रमशः अमृत कलश, जप माला(Japa Mala), गदा एवं चक्र सुशोभित हैं।
विवरण(Description): देवी कूष्माण्डा(Goddess Kushmanda) की आठ भुजायें हैं, अतः उन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है। भक्तों की मान्यता है कि, सिद्धियाँ तथा निधियाँ प्रदान करने की समस्त शक्ति देवी माँ की जप माला में विद्यमान है।
यह वर्णित है कि, देवी माता ने अपनी मधुर मुस्कान से सम्पूर्ण संसार की रचना की, जिसे संस्कृत में ब्रह्माण्ड कहा जाता है। देवी माँ को श्वेत कद्दू की बली अति प्रिय है, जिसे कुष्माण्डा के नाम से जाना जाता है। ब्रह्माण्ड तथा कूष्माण्ड से सम्बन्धित होने के कारण, देवी का यह रूप देवी कूष्माण्डा(Devi Kushmanda) के नाम से लोकप्रिय हैं।
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‘Surasampurnakalasham rudhiraplutmeva cha.
Dadhana hastapadmaabhyam Kushmanda shubhdastu me.
मां कूष्मांडा को पूजा के समय हलवा(halwa), मीठा दही(sweet curd) या मालपुए(malpua) का प्रसाद चढ़ाना चाहिए और इस भोग को खुद तो ग्रहण करें ही साथ ही ब्राह्मणों को भी दान देना चाहिए।
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मां कूष्मांडा को लाल रंग( red colour) प्रिय है, इसलिए पूजा में उनको लाल रंग के फूल जैसे गुड़हल, लाल गुलाब आदि अर्पित कर सकते हैं, इससे देवी प्रसन्न होती हैं।
देवी कूष्माण्डा अपने भक्तों को रोग,शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं। जिस व्यक्ति को संसार में प्रसिद्धि की चाह रहती है, उसे मां कूष्मांडा की पूजा करनी चाहिए। देवी की कृपा से उसे संसार में यश की प्राप्ति होगी।
सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि त्रिदेवों ने चिरकाल में सृष्टि की रचना करने की कल्पना की। उस समय समस्त ब्रह्मांड में घोर अंधेरा छाया हुआ था। न राग, न ध्वनि, केवल सन्नाटा था। त्रिदेवों ने जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा से सहायता ली।
मां दुर्गा के चौथे स्वरूप, मां कुष्मांडा ने तत्क्षण अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की। उनके मुखमंडल से निकले प्रकाश ने समस्त ब्रह्मांड को प्रकाशमान कर दिया। इसी कारण उन्हें मां कुष्मांडा कहा जाता है।
मां का निवास सूर्य लोक में है। शास्त्रों में कहा जाता है कि मां कुष्मांडा के मुखमंडल से निकला तेज ही सूर्य को प्रकाशमान करता है। वे सूर्य लोक के अंदर और बाहर, सभी जगह निवास कर सकती हैं।
मां के मुख पर तेजोमय आभा प्रकट होती है, जो समस्त जगत का कल्याण करती है। उनका तेज सूर्य के समान कांतिमय है, और इसे धारण करने की क्षमता केवल जगत जननी आदिशक्ति मां कुष्मांडा में ही है।
Prayer Mantra of the Goddess Kushmanda
सुरा सम्पूर्णकलशम् रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे।
Sura Sampoornakalasham Rudhiraplutmeva Cha.
Dadhana Hastapadmaabhyam Kushmanda Shubhdaastu Me.
Beej Mantra of Goddess Kushmanda
ऐं ह्रीं देवायै नम:।
Aim Hree Devayai Namah:
Pooja mantra
“ॐ कुष्माण्डायै नमः”
“Om Kushmandayai Namah”
॥ Aarti Devi Kushmanda Ji Ki ॥
कूष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली। शाकंबरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे । भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे। सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
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माँ कूष्मांडा कायाकल्प, पोषण और स्थिरता का प्रतीक हैं, जिसकी हम सभी अपने जीवन में कहीं न कहीं तलाश करते हैं। इसलिए इस नवरात्रि, शांति, समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य के लिए माँ कूष्मांडा की दिव्य कृपा प्राप्त करने हेतु पूर्ण आस्था और भक्ति के साथ उनकी पूजा करें।