हिंदू संस्कृति में गंगा सप्तमी का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष गंगा सप्तमी 3 मई 2025 को मनाई जाएगी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन देवी गंगा का जन्म हुआ था, इसलिए इसे गंगा जयंती के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन देवी गंगा की विशेष पूजा दोपहर के समय की जाती है। इस दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व होता है।
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गंगा सप्तमी – शनिवार, मई 3, 2025 को
गंगा सप्तमी मध्याह्न मुहूर्त – 11:18 से 13:53
अवधि – 02 घण्टे 36 मिनट्स
गंगा दशहरा – बृहस्पतिवार, जून 5, 2025 को
सप्तमी तिथि प्रारम्भ – मई 03, 2025 को 07:51 बजे
सप्तमी तिथि समाप्त – मई 04, 2025 को 07:18 बजे
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गंगा सप्तमी के दिन पानी में गंगा जल मिलाकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें।
मां गंगा की तस्वीर स्थापित करें और कलश में थोड़ा गंगा जल भरें।
देवी मां को पुष्प, सिन्दूर, अक्षत, गुलाल, लाल फूल, लाल चंदन अर्पित करें।
इसके बाद गुड़, मिठाई और फल अर्पित करें।
अंत में धूप-दीप से श्री गंगा सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करें।
गंगा सप्तमी पर गंगा जी के वैदिक मंत्रों का जाप करना चाहिए।
पूजा का समापन आरती के साथ करें।
तामसिक चीजों से दूर रहें।
अंत में प्रसाद परिवार के सदस्यों में बांट दें।
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गंगा सप्तमी की कथा और महत्व का उल्लेख पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण और नारद पुराण जैसे धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, देवी गंगा पहली बार गंगा दशहरा के दिन पृथ्वी पर उतरी थीं। हालांकि, ऋषि जह्नु ने गंगा का जल पी लिया था। लेकिन देवताओं और राजा भगीरथ के अनुरोध पर उन्होंने वैशाख शुक्ल पक्ष सप्तमी के दिन गंगा को एक बार फिर छोड़ दिया। इसलिए, इस दिन को देवी गंगा के पुनर्जन्म के रूप में मनाया जाता है। इसे जह्नु सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है।
देवी गंगा का एक और नाम जाह्नवी है क्योंकि वह ऋषि जह्नु की पुत्री थीं। ऐसा माना जाता है कि गंगा नदी में पवित्र स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं। कई हिंदू गंगा नदी के किनारे अंतिम संस्कार करना चाहते हैं क्योंकि इससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो लोग ‘मंगल’ के प्रभाव में हैं, उन्हें गंगा सप्तमी पर देवी गंगा की पूजा करनी चाहिए।
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गंगा सप्तमी पूरे भारत में और जहाँ भी गंगा नदी को पूजा जाता है, वहाँ बहुत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है। यह त्यौहार गंगा के किनारे के क्षेत्रों में विशेष महत्व रखता है, जहाँ भक्त दिव्य नदी का सम्मान करने के लिए इकट्ठा होते हैं। यह उत्सव निम्नलिखित स्थानों पर विशेष रूप से उत्साहपूर्ण होता है:
हरिद्वार: अपने पवित्र घाटों के लिए प्रसिद्ध, हरिद्वार में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं और नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं।
ऋषिकेश: आध्यात्मिक केंद्र, ऋषिकेश में भव्य उत्सव मनाया जाता है, जहाँ लोग प्रार्थना करने और माँ गंगा का आशीर्वाद लेने आते हैं।
वाराणसी (काशी): अपने प्रतिष्ठित घाटों के साथ प्राचीन शहर वाराणसी, भक्ति का केंद्र बन जाता है, क्योंकि हज़ारों लोग इस पवित्र अवसर को मनाने आते हैं।
प्रयागराज (इलाहाबाद): त्रिवेणी संगम के लिए प्रसिद्ध, प्रयागराज में इस शुभ दिन पर महत्वपूर्ण अनुष्ठान और प्रार्थनाएँ की जाती हैं।
अन्य गंगा घाट: गंगा सप्तमी गंगा के मार्ग पर स्थित कई अन्य शहरों और कस्बों में भी मनाई जाती है, जहाँ श्रद्धालु मंदिरों और नदी के किनारों पर उत्सव मनाते हैं।
जो लोग व्यक्तिगत रूप से गंगा नदी पर नहीं जा पाते हैं, वे घर पर भी यह उत्सव मना सकते हैं। कई भक्त अपने नहाने के पानी में गंगाजल (गंगा का पानी) की कुछ बूँदें मिलाते हैं या देवी गंगा की छवि या मूर्ति के सामने प्रार्थना करते हैं।
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🍀गंगा जयंती मंत्रों का जाप(Chanting of Ganga Jayanti Mantras):🍀
ॐ नमो गंगायै विश्वरुपिणी नारायणी नमो नमः।
Om Namo Gangayai Vishvarupini Narayani Namo Namah ।
गंगा गंगेति यो ब्रूयात, योजनानाम् शतैरपि। मुच्यते सर्वपापेभ्यो, विष्णुलोके स गच्छति।
Ganga Gangeti Yo Bruyat, Yojanaam Shatairapi. Muchyate Sarvapapaybhyo, Vishnu Loke Sa Gachchati ।
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ओम जय गंगे माता, श्री जय गंगे माता ।
जो नर तुमको ध्यान, मन वंचित फल पात ।।
ओम जय गंगे माता …
चंद्रा सी ज्योत तुम्हारी, जल निर्मल अता ।
शरण पडे जो तेरी, सो नर तर जाटा ।।
ओम जय गंगे माता …..
पुत्रा सागर के तारे, सब जग को ग्याता ।
कृपा द्रष्टि तुमहारी, त्रिभुवन सुख दाता ।।
ओम जय गंगे माता …..
एक बर जो परानी, शरण तेरी आटा ।
यम की तस मितकार, परमगति पात ।।
ओम जय गंगे माता …..
आरती मात तुमहारी, जो जन नित्य गाता ।
सेवक वाही सहज मैं, मुक्ति को पट ।।
ओम जय गंगे माता …..
ओम जय गंगे माता ….. ।।
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