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🌼 देवउत्थान एकादशी 🌼

॥ ॐ श्री परमात्मने नमः ॥

🚩 देवउत्थान एकादशी 2024 🚩

देवोत्थान एकादशी के बारे में (About Devutthan Ekadashi Ekadashi):

              हिंदू संस्कृति के अनुसार, किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने का समय उसकी सफलता की कुंजी है। लोगों का मानना है कि कैलेंडर वर्ष के दौरान एक ऐसा चरण होता है जब किसी भी शुभ कार्य या कार्यक्रम की योजना नहीं बनानी चाहिए। देवोत्थान एकादशी ऐसी ही एक एकादशी है जो अशुभ समय के अंत का प्रतीक है। देवोत्थान एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। यह चंद्र मास या शुक्ल पक्ष के शुक्ल पक्ष में आती है। 

            यह चार महीने की अवधि या चातुर्मास के अंत का प्रतीक है जब भगवान विष्णु अपनी नींद तोड़ते हैं। इस अवधि को भगवान विष्णु के जागरण के रूप में चिह्नित किया जाता है। 24 एकादशियों में से, यह एक विवाह तिथियों के लिए विशेष मानी जाती है। यह अवधि हिंदू विवाह सीजन की शुरुआत का प्रतीक है। इसे कार्तिकी एकादशी, कार्तिक शुक्ल एकादशी और कार्तिकी जैसे कई नामों से जाना जाता है। देवोत्थान एकादशी के बाद कार्तिक पूर्णिमा आती है जिसे देव दिवाली या देवताओं की दिवाली के रूप में मनाया जाता है। चूंकि भगवान विष्णु शयनी एकादशी पर सोते हैं और प्रबोधिनी एकादशी पर जागते हैं, इसलिए कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। यह भी माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने तुलसी से विवाह किया था। 

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🕰️Devutthan Ekadashi 2024 
Date & Time:📅


देवउत्थान एकादशी मंगलवार, नवम्बर 12, 2024 को 

13वाँ नवम्बर को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 06:38 ए एम से 08:52 ए एम 

पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 01:01 पी एम 

एकादशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 11, 2024 को 06:46 पी एम बजे 

एकादशी तिथि समाप्त – नवम्बर 12, 2024 को 04:04 पी एम बजे 

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🔰देवोत्थान एकादशी का महत्व (Significance Of  Devutthana Ekadashi):
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          देवोत्थान एकादशी का हिंदू धर्म में बहुत अधिक आध्यात्मिक महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और अनुष्ठान करने से आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है। “प्रबोधिनी” शब्द का अर्थ है जागृति, जो आत्मा को अज्ञान से ज्ञान की ओर जागृत करने का प्रतीक है। 

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🔰देवोत्थान एकादशी परकरें ये गलती (Do not make these mistakes on Dev Uthani Ekadashi):  🔰


           
देवोत्त्थान एकादशी के दिन गलती से भी तुलसी न तोड़ें. तुलसी माता को लाल चुनरी भी जरूर चढ़ाएं. तुलसी के नीचे दीया जलाएं. इस दिन चावल का सेवन न करें. मन शांत रखें. घर में सुख-शंति का सद्भाव बनाए रखें. इस दिन घर में तामसिक आहार जैसे कि प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा या बासी भोजन के सेवन से परहेज करें. 

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  🔰तुलसी विवाह और देवोत्थान एकादशी (Tulsi Vivah and Devutthana Ekadashi)  🔰:


           प्रबोधिनी एकादशी की पूर्व संध्या पर तुलसी विवाह करने की रस्म होती है। तुलसी विवाह भगवान शालिग्राम (भगवान विष्णु के अवतार) और तुलसी (पवित्र पौधा) के बीच होता है। तुलसी को ‘विष्णु प्रिया’ के रूप में भी पूजा जाता है। किंवदंतियों और हिंदू शास्त्रों के अनुसार, जिन दंपत्तियों की कोई बेटी या बालिका नहीं है, उन्हें कन्यादान का पुण्य कमाने के लिए अपने जीवनकाल में एक बार तुलसी विवाह की रस्म अवश्य करनी चाहिए। 

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🍀देवउठनी एकादशी पूजा विधि (Devuthani Ekadashi Puja Vidhi):
 
  •   सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। 

  • घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। 

  • भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें। 

  • भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें। 

  • अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें। 

  • देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह भी होता है। 

  • इस दिन भगवान विष्णु के शालीग्राम अवतार और माता तुलसी का विवाह किया जाता है।  

  • इस दिन माता तुलसी और शालीग्राम भगवान की भी विधि- विधान से पूजा करें। 

  • भगवान की आरती करें।  

  • भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।  

  • इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।  

  • इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें। 

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Mantras of  Devutthana Ekadashi:
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उत्तिष्ठो तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते|

त्वयि सुप्ते जगन्नाथ् जगत् सुप्तं भवेदिदम् || 

 उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठो तिष्ठ माधव |

गता मेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः || 

 

Utitshthothist Govind tyaz nidram jagatapate|

tvayi supte jagannath jagat suptam bhavedidam| 

Uthithe cheshte  sarva muttishthotitsht madav|

gata megha viycchave nirmalam nirmaladisha ||

 

शारदानिपुष्पाणि गृहान् मम केशव   

Shardani ch pushpani grihan mam Keshav’ 

 

यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन | 

  तेह् नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे संध्याः सन्ति देवाः || 

 

Yagnen yagyamayjant devastani dharmani prathamanasyan | 

 theh naakam mahimaanah schant yatra purve sandhyah santi devah|| 

 

इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता |

त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषसायिना || 

इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो |

न्यूनं संपूर्णतां यातु तवत्प्रसादज्जनार्दन || 

 

Iyam tu Dwadashi dev prabhodhay vinirmita |

tvayev sarvalokanam hitratham sheshsayina|| 

Idam vratam maya dev kritam preetaye tab prabho |

nyunam sampurnataam yaatu tvatprasadajnardana|| 

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निष्कर्ष (Conclusion):


            देवउत्थान एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू संस्कृति में बहुत महत्व रखती है क्योंकि यह विश्राम की अवधि के बाद दिव्य जागरण का प्रतीक है। इस शुभ दिन पर व्रत रखने और अनुष्ठान करने से भक्तों को आध्यात्मिक ज्ञान और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है। आइए हम खुद को भक्ति में डुबो दें और भगवान विष्णु की दिव्य कृपा प्राप्त करें। 

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