Shrimad bhagvat geeta (SBG)

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🌼 नवरात्रि 2024 दिन 6 🌼

॥ ॐ श्री परमात्मने नमः ॥

🚩 माँ कात्यायनी 🚩

माँ कात्यायनी कौन हैं?

       माँ कात्यायनी, देवी दुर्गा का एक शक्तिशाली अवतार हैं, जिन्हें राक्षस राजा महिषासुर पर विजय के लिए महिषासुरमर्दिनी के रूप में जाना जाता है। अक्सर शेर की सवारी करते हुए चित्रित की जाती हैं, उनके बाएं हाथ में तलवार और कमल होता है, जबकि उनके दाहिने हाथ में अभय और वरद मुद्राएँ होती हैं, जो सुरक्षा और आशीर्वाद का प्रतीक हैं। कात्यायनी को बुरी शक्तियों को हराने वाली के रूप में पूजा जाता है। वामन पुराण के अनुसार, महिषासुर के अत्याचारों से क्रोधित दैवीय प्राणियों ने माँ कात्यायनी को बनाने के लिए अपनी सामूहिक ऊर्जा को प्रवाहित किया। यह शक्तिशाली ऊर्जा कात्यायन ऋषि के आश्रम में प्रकट हुई, जिन्होंने इसे देवी के विकराल रूप में ढाला। यही कारण है कि उन्हें कात्यायनी के नाम से भी जाना जाता है, जो ऋषि कात्यायन से उनके संबंध को दर्शाता है। 

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🌻 स्कंदमाता की  पूजा विधि :

 

  • नवरात्रि के पांचवें दिन सबसे पहले स्‍नान करें और स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें।  
  • अब घर के मंदिर या पूजा स्‍थान में चौकी पर स्‍कंदमाता की तस्‍वीर या प्रतिमा स्‍थापित करें।  
  • गंगाजल से शुद्धिकरण करें फिर एक कलश में पानी लेकर उसमें कुछ सिक्‍के डालें और उसे चौकी पर रखें। अब पूजा का संकल्‍प लें।  
  • इसके बाद स्‍कंदमाता को रोली-कुमकुम लगाएं और नैवेद्य अर्पित करें।  
  • अब धूप-दीपक से मां की आरती उतारें और आरती के बाद घर के सभी लोगों को प्रसाद बांटें और आप भी ग्रहण करें।  
  • स्‍कंद माता को सफेद रंग पसंद है इसलिए आप सफेद रंग के कपड़े पहनकर मां को केले का भोग लगाएं। 

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🌻 नवरात्रि दिव 6 महत्व 🌻

  

      माँ कात्यायनी बृहस्पति ग्रह से जुड़ी हैं और बुद्धिमत्ता और शांति के गुणों का प्रतीक हैं। माना जाता है कि उनके दिव्य आशीर्वाद से भक्तों के पाप धुल जाते हैं, नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और बाधाएं दूर होती हैं। नवरात्रि के दौरान, अविवाहित लड़कियां मां कात्यायनी की पूजा करने के लिए समर्पित दिन पर उपवास रखती हैं, और अपनी पसंद का उपयुक्त जीवनसाथी पाने के लिए उनका आशीर्वाद मांगती हैं। 

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🌻  नवरात्रि दिवस 6: मां कात्यायनी भोग: 🌻

  

      चैत्र नवरात्रि के छठे दिन, भक्त अपनी पूजा अनुष्ठानों के हिस्से के रूप में विशेष भोग के रूप में शहद चढ़ाकर देवी कात्यायनी, मां दुर्गा के छठे स्वरूप का सम्मान करते हैं। 

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🌻 मां कात्यायनी व्रत कथा (Maa Katyayani vrat katha): 

  

      पौराणिक कथा के अनुसार एक बार महर्षि कात्यायन ने संतान प्राप्ति के लिए मां भगवती की कठोर तपस्या की। महर्षि कात्यायन की कठोर तपस्या से मां भगवती प्रसन्न हुई और उन्हें साक्षात दर्शन दिए। कात्यायन ऋषि ने मां के सामने अपनी इच्छा प्रकट की, इसपर मां भगवती ने उन्हें वचन दिया कि वह उनके घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेंगी। एक बार महिषासुर नाम के एक दैत्य का अत्याचार प्रितिदित तीनों लोकों पर बढ़ता ही जा रहा था। इससे सभी देवी-देवता परेशान हो गए। 

      तब त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात भगवान शिव के तेज से देवी को उत्पन्न किया जिन्होने महर्षि कात्यायन के घर जन्म लिया। महर्षि कात्यायन के घर जन्म लेने के कारण उन्हें कात्यायनी नाम दिया गया। माता रानी के घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने के बाद ऋषि कात्यायन ने सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि पर मां कात्यायनी की विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना की। इसके बाद मां कात्यायनी ने दशमी के दिन महिषासुर का वध किया और तीनों लोकों को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। 

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🌻मां कात्यायनी की पूजा :🌻

 

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ़-सुथरे वस्त्र पहनें.  
  •  मां कात्यायनी की चौकी लगाएं और पीले रंग का कपड़ा और फूलों का इस्तेमाल करें.  
  •  मां कात्यायनी की प्रतिमा को शुद्ध जल या गंगाजल से स्नान कराएं.  
  •  मां को पीले रंग के वस्त्र पहनाएं और पीले रंग के फूल अर्पित करें.  
  •  मां को रोली, कुमकुम, सिंदूर का तिलक लगाएं.  
  •  मां को पांच तरह के फल और मिठाई का भोग लगाएं. मां को शहद का भोग भी ज़रूर लगाएं.  
  •  मां कात्यायनी की आरती करें और मंत्रों का जाप करें.  
  •  घी का दीपक और धूप जलाएं और दुर्गा सप्तशती, मां कात्यायनी मंत्र, स्तुति, ध्यान, दुर्गा चालीसा आदि का पाठ करें.  
  •  अंत में आरती करें. 

 

Mantra:

 

ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥ 

 Om Devi Katyayanyai Namah॥ 

  

Prarthana:

 

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना। 

कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥ 

  

Chandrahasojjvalakara Shardulavaravahana। 

Katyayani Shubham Dadyad Devi Danavaghatini॥ 

  

Stuti:

 

या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।  

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ 

  

Ya Devi Sarvabhuteshu Ma Katyayani Rupena Samsthita। 

Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namah॥ 

 

॥ आरती देवी कात्यायनी जी की ॥

  

जय जय अम्बे जय कात्यायनी।जय जग माता जग की महारानी॥ 

 बैजनाथ स्थान तुम्हारा।वहावर दाती नाम पुकारा॥ 

 कई नाम है कई धाम है।यह स्थान भी तो सुखधाम है॥ 

 हर मन्दिर में ज्योत तुम्हारी।कही योगेश्वरी महिमा न्यारी॥ 

 हर जगह उत्सव होते रहते।हर मन्दिर में भगत है कहते॥ 

 कत्यानी रक्षक काया की।ग्रंथि काटे मोह माया की॥ 

 झूठे मोह से छुडाने वाली।अपना नाम जपाने वाली॥ 

 बृहस्पतिवार को पूजा करिए।ध्यान कात्यानी का धरिये॥ 

 हर संकट को दूर करेगी।भंडारे भरपूर करेगी॥ 

 जो भी माँ को भक्त पुकारे।कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥ 

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🌻 मां दुर्गा की आरती  🌻

  

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी। 

तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥ 

जय अम्बे गौरी 

 

माँग सिन्दूर विराजत, टीको मृगमद को। 

उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको॥ 

जय अम्बे गौरी 

  

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै। 

रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै॥ 

जय अम्बे गौरी 

 

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी। 

सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी॥ 

जय अम्बे गौरी 

  

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती। 

कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति॥ 

जय अम्बे गौरी 

 

शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती। 

धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती॥ 

जय अम्बे गौरी 

  

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे। 

मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥ 

जय अम्बे गौरी 

 

ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी। 

आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी॥ 

जय अम्बे गौरी 

  

चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरूँ। 

बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु॥ 

जय अम्बे गौरी 

 

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता। 

भक्तन की दु:ख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥ 

जय अम्बे गौरी 

  

भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी। 

मनवान्छित फल पावत, सेवत नर-नारी॥ 

जय अम्बे गौरी 

 

कन्चन थाल विराजत, अगर कपूर बाती। 

श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥ 

जय अम्बे गौरी 

  

श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावै। 

कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै॥ 

जय अम्बे गौरी 

 

विश्वम्भरी स्तुति:

  

विश्वंभरी अखिल विश्व तनी जनेता 

विद्या धरी वदनमा वसजो विधाता  

दुर्बुद्धिने दूर करी सदबुद्धि आपो  

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो    

  

भूलो पड़ी भवरने भटकू भवानी 

सूझे नहीं लगिर कोई दिशा जवानी  

भासे भयंकर वाली मन ना उतापो   

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो    

  

आ रंकने उगरावा नथी कोई आरो 

जन्मांड छू जननी हु ग्रही बाल तारो 

ना शु सुनो भगवती शिशु ना विलापो 

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो    

  

माँ कर्म जन्मा कथनी करता विचारू  

आ स्रुष्टिमा तुज विना नथी कोई मारू  

कोने कहू कथन योग तनो बलापो 

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो    

  

हूँ काम क्रोध मद मोह थकी छकेलो  

आदम्बरे अति घनो मदथी बकेलो 

दोषों थकी दूषित ना करी माफ़ पापो  

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो    

  

ना शाश्त्रना श्रवण नु पयपान किधू  

ना मंत्र के स्तुति कथा नथी काई किधू 

श्रद्धा धरी नथी करा तव नाम जापो 

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो    

  

रे रे भवानी बहु भूल थई छे मारी  

आ ज़िन्दगी थई मने अतिशे अकारि 

दोषों प्रजाली सगला तवा छाप छापो 

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो    

  

खाली न कोई स्थल छे विण आप धारो 

ब्रह्माण्डमा अणु अणु महि वास तारो 

शक्तिन माप गणवा  अगणीत  मापों 

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो    

  

पापे प्रपंच करवा बधी वाते पुरो 

खोटो खरो भगवती पण हूँ तमारो  

जद्यान्धकार दूर सदबुध्ही आपो  

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो  

  

शीखे सुने रसिक चंदज एक चित्ते  

तेना थकी विविधः ताप तळेक चिते  

वाधे विशेष वली अंबा तना प्रतापो  

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो    

  

श्री सदगुरु शरणमा रहीने भजु छू  

रात्री दिने भगवती तुजने भजु छू 

सदभक्त सेवक तना परिताप छापो 

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो    

  

अंतर विशे अधिक उर्मी तता भवानी 

गाऊँ स्तुति तव बले नमिने मृगानी  

संसारना सकळ रोग समूळ कापो 

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो 

 

 

मां दुर्गा के मंत्र | Mantras of maa Durga

  

1- ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। 

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।। 

  

2- या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।। 

  

3- या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता, 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।। 

  

4-या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता, 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।। 

  

5- सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। 

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।। 

  

6- दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः। सवर्स्धः स्मृता मतिमतीव शुभाम् ददासि।। 

दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके। मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।  

  

मां दुर्गा ध्यान मंत्र है | Dhyan mantras of Devi Durga

  

ॐ जटा जूट समायुक्तमर्धेंन्दु कृत लक्षणाम| 

लोचनत्रय संयुक्तां पद्मेन्दुसद्यशाननाम॥ 

 

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