Shrimad bhagvat geeta (SBG)

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🌼 गौरी व्रत 🌼

॥ ॐ श्री परमात्मने नमः ॥

🚩 Gauri Vrat 2024 🚩

Significance of Mangala Gauri Vrat:
 गौरी व्रत :

 

        भगवान शिव और देवी पार्वती से जुड़े सभी त्योहारों में से जया पार्वती व्रत जिसे गौरी व्रत (बुधवार, 17 जुलाई, 2024) के नाम से भी जाना जाता है, देवी पार्वती को समर्पित एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। ‘गौरीपार्वती के नामों में से एक है जिसका अर्थ हैशानदार गोरी‘। गौरी व्रत त्योहार शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होता है और पांच दिनों के बाद पूर्णिमा को समाप्त होता हैइसे गुजरात में मोरकट व्रत के नाम से भी जाना जाता है 

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मंगला गौरी व्रत का महत्व:

 

          गौरी व्रत मुख्य रूप से गुजरात और भारत के अन्य पश्चिमी हिस्सों में अविवाहित लड़कियों द्वारा शिव के समान गुणों और स्वभाव वाले पति की प्राप्ति के लिए मनाया जाता हैयह व्रत देवी शक्ति का आशीर्वाद पाने के लिए महिलाएं रखती हैंमां गौरी की पूजा करने से जीवन अत्यंत लाभ से भर जाता है और उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैंइस दिन कुंवारी लड़कियां माता पार्वती की पूजा करती हैंदेवी पार्वती भगवान शिव की जीवनसंगिनी हैं और भक्तों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए तत्पर रहती हैंअच्छा पति पाने और सफल वैवाहिक जीवन के लिए लड़कियां और महिलाएं मंगला गौरी की पूजा कर रही हैं गौरी व्रत आमतौर पर या पारंपरिक रूप से पाँच दिनों तक मनाया जाता हैलेकिन कुछ महिलाएँ इसे पाँच या सात साल की अवधि तक करती हैं  

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Gauri Vrat Date and Time:

 

🍀 गौरी व्रत बुधवार, 17 जुलाई, 2024 🍀

🌺 गौरी व्रत रविवार, 21 जुलाई, 2024 को समाप्त होगा 🌺

🌹 जया पार्वती व्रत शुक्रवार, 19 जुलाई, 2024 🌹

  🌷🌼🌻

About Gauri Vrat:
पूजा विधि :

 

  • श्रावण मास के मंगलवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठें। 
  • नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ-सुथरे धुले हुए अथवा नए वस्त्र धारण कर व्रत करें। 
  • मां मंगला गौरी (पार्वती जी) का एक चित्र अथवा प्रतिमा लें। 
  • फिर निम्न मंत्र के साथ व्रत करने का संकल्प लें। 
  • ‘मम पुत्रापौत्रासौभाग्यवृद्धये श्रीमंगलागौरीप्रीत्यर्थं पंचवर्षपर्यन्तं मंगलागौरीव्रतमहं करिष्ये।’ 
  • अर्थात्- मैं अपने पति, पुत्र-पौत्रों, उनकी सौभाग्य वृद्धि एवं मंगला गौरी की कृपा प्राप्ति के लिए इस व्रत को करने का संकल्प लेती हूं। 
  • तत्पश्चात मंगला गौरी के चित्र या प्रतिमा को एक चौकी पर सफेद फिर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित किया जाता है। 
  • प्रतिमा के सामने एक घी का दीपक (आटे से बनाया हुआ) जलाएं। दीपक ऐसा हो जिसमें 16 बत्तियां लगाई जा सकें। 
  • फिर ‘कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्। नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्…।।’ 
  • यह मंत्र बोलते हुए माता मंगला गौरी का षोडशोपचार पूजन करें। 
  • माता के पूजन के पश्चात उनको (सभी वस्तुएं 16 की संख्या में होनी चाहिए) 16 मालाएं, लौंग, सुपारी, इलायची, फल, पान, लड्डू, सुहाग की सामग्री, 16 चूड़ियां तथा मिठाई अर्पण करें। इसके अलावा 5 प्रकार के सूखे मेवे, 7 प्रकार के अनाज-धान्य (जिसमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) आदि चढ़ाएं। 
  • पूजन के बाद मंगला गौरी की कथा सुनी जाती है। 
  • इस व्रत में एक ही समय अन्न ग्रहण करके पूरे दिन मां पार्वती की आराधना की जाती है। 
  • शिवप्रिया पार्वती को प्रसन्न करने वाला यह सरल व्रत करने वालों को अखंड सुहाग तथा पुत्र प्राप्ति का सुख मिलता है। 
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गौरी व्रत मंत्र और प्रार्थना :

 

Mantra:

 

ॐ देवी महागोयें नमः॥ 

“Salutations to the divine Mahagauri” 

  

Prarthana 

 

वृषेसताम्बरधरा शुचिः। 

महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रदा ॥

  

Seated on a white bull, wearing white garments, and pure in nature, 

Mahagauri bestows auspiciousness and joy to Lord Shiva. 

 

🍀 माता पार्वतीजी का प्रतीक: 

        आषाढ़ महीना यानी वर्षा का महीना और हरियाली का महीनाइसी के प्रतीक के रूप में व्रत के दौरान जवारा की पूजा की जाती हैजवारा सात प्रकार के अनाज जैसे गेहूँ, गेहूँ, तिल, मूंग, तुवर, चोला और अक्षत को बोकर उगाया जाता हैयह जवारा स्वयं माता पार्वती का प्रतीक माना जाता है! 

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🍀 नगला क्यों चढ़ाया जाता है 

    रुणी पूनी को कंकू से रंगकर उसमें गांठ लगाकर नगला बनाया जाता हैयह नगला शिवजी का प्रतीक माना जाता हैशिवजी मृत्युंजय माता पार्वती मृत्युंजय हैंऔर इसलिए शास्त्रों में कहा गया है कि जवारा में नगला चढ़ाने के बाद ही दोनों की संयुक्त पूजा होती है 

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Gauri Vrati

 

 

🍀 गौरी व्रत कैसे मनाएँ? 

 

     गौरी व्रत या गौरी पूजा देवी पार्वती को समर्पित है। यह व्रत गुजराती कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ महीने में मनाया जाता है, जो आषाढ़ एकादशी या देव शयनी एकादशी से शुरू होकर गुरु पूर्णिमा या आषाढ़ पूर्णिमा तक चलता है। इन पाँच दिनों को पश्चिमी भागों में, खासकर भारत के गुजरात में पंचुका या गौरी पंचक के रूप में माना जाता है। 

     गौरीव्रत के पहले दिन युवतियां सूर्योदय के समय थाली में सजाए गए जवारा, नगला और पूजापा लेकर समूह में शिव मंदिर जाती हैं। अक्षत-कंकू से षोडशोपचार पूजन कर जवारा जोतती हैं। शिवलिंग पर जल चढ़ाती हैं।  प्रतीकात्मक रूप से किसान धान बोता है।   

     पूजा के बाद युवतियां शिव पार्वती से अपने पसंदीदा भोजन की प्रार्थना करती हैं और विश्वास और ईमानदारी के साथ निरंतर सौभाग्य और अच्छी संतान के लिए प्रार्थना करती हैं। इस व्रत के दौरान महिलाएँ सब्ज़ियाँ, नमक और टमाटर खाने से परहेज़ करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस तरह के सख्त पालन से व्यक्ति अंदर से बाहर तक शुद्ध हो जाता है। 

     पांच दिवसीय व्रत के दौरान कुंवारी युवतियां बिना मीठा गुड़ खाकर उपवास रखती हैं। इसीलिए कुछ प्रांतों में इस व्रत को मोलव्रत या मोलकट व्रत कहा जाता है। 

     व्रत के पांचवें दिन ही जलाशय में जवारा विसर्जित करने के बाद युवतियां रात भर जागकर शिव पार्वती की पूजा करती हैं। जागरण के बाद छठे दिन पारणा कर व्रत पूरा करती हैं। इस व्रत को लगातार पांच वर्षों तक करने के बाद इसका पारण किया जाता है। गौरी व्रत में कन्याएं सौभाग्य के प्रतीक चिन्हों का दान करती हैं। 

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